Saturday 9 January 2016

त्रिस्तरीय(Three Tier)  पंचायतीराज व्यवस्था बनाम द्विस्तरीय (Two Tier) पंचायतीराज व्यवस्था

देश में पंचायती राज व्यवस्था लाने का श्रेय निःसन्देह पूर्व प्रधानमंत्री स्व. श्री राजीव गाॅधी को जाता है, जिन्होंने अपने अथक प्रयासों से सत्ता का विकेन्द्रीकरण करने की ठानी जिससे देश के अंतिम व्यक्ति तक विकास की रोशनी पहुॅच सके। वर्ष 1992 -1993 में 72वें और 73वें संविधान संशोधन के माध्यम से पूरे देश को अधिकांश राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों में त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था लागू हुई। इस त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था में आज लगभग 22 वर्षों से प्रति पाॅच  वर्ष के लिये ग्राम स्तर पर ग्राम प्रधान, विकासखण्ड स्तर पर  क्षेत्र पंचायत सदस्य/ क्षेत्र पंचायत प्रमुख तथा जिला स्तर पर जिला पंचायत सदस्य - जिला पंचायत अध्यक्ष को जनता द्वारा चुना जाता है।
जहाॅ तक जानकारी है, कि अधिकांश राज्यों में ग्राम प्रधान, क्षेत्र पंचायत सदस्य (Intermediate Panchayt Member) और जिला पंचायत सदस्य ही सीधे जनता द्वारा चुने जाते हैं। क्षेत्र पंचायत प्रमुख और जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव सीधे जनता द्वारा न होकर चुने गये सदस्यों के द्वारा किया जाता है। हाॅल ही में उत्तर प्रदेश के पंचायत चुनाव 2015 -16  के परिणामों पर एक विश्लेषणात्मक नजर डाली जाये तो परिणाम मिलेगा कि अधिकतर क्षेत्र पंचायत प्रमुख और जिला पंचायत अध्यक्ष प्रदेश में सरकार चला रही सत्ताधारी दल के ही बने हैं, इससे पूर्व भी अधिकांश राज्यों में कमोबेश ऐसा ही होता आया कि सत्ताधारी दल के ही अधिकतर क्षेत्र पंचायत प्रमुख और जिला पंचायत अध्यक्ष बनते हैं । अक्सर इसमें धनबल,बाहुबल और सत्ताबल के प्रयोग किये जाने की शिकायतें प्रमाण सहित मिल जाती हैं और यह एस सच्चाई भी बनती जा रही है,कि पंचायत और नगरनिकाय के चुनावों को राज्य सरकार की सत्ताधारी दल अपने लिये जनता का विश्वास बनाने के लिये जबरन  इस्तेमाल करती है। क्या अब आवश्यकता नहीं है,कि एक बार फिर पंचायतीराज व्यवस्था की समीक्षा की जाये और इसकी खामियों को दूर करने के लिये आवश्यक निर्णायक कदम उठाये जाएँ ?
मेरा मानना है, कि राजीव गांधी ने पंचायती राज व्यवस्था को जो सपना देखा था, कम से कम आज की स्थिति देखकर निश्चित कहा जा सकता है, कि यह उनका सपना नहीं होगा। मंडल कमीशन के लागू होने से देश में पिछड़े वर्ग के समुदाय को देश की आर्थिक ,सामाजिक , शैक्षिक और राजनैतिक मुख्य धारा में आने का अवसर मिला।  लेकिन इसके साथ ही जाति और समुदाय को केन्द्र में रखकर राजनैतिक दलों का गठन भी देश में हुआ और क्षेत्रीय दलों के नाम पर सत्ता भी प्राप्त की। निश्चित रुप से सबसे ज्यादा नुकसान पूरे देश में विस्तारित एकमात्र राजनैतिक दल भारतीय राष्ट्रीय काॅग्रेस को ही हुआ और भारतीय जनता  पाटीॅ ने हिन्दुत्व के मुद्दे को अपनाते हुये अपना स्थान हर समुदाय के लोगों पर कमोबेश कायम कर लिया।त्रिस्तरीय पंचायती राज के लागू होने के बाद तो काॅग्रेस की स्थिति दिनों दिन प्रत्येक राज्य में कमजोर पड़ने लगी और बदस्तूर जारी है, क्योंकि पंचायतीराज  व्यवस्था में यदि ग्राम प्रधान के पद के निर्वाचन को छोड़ दिया जाये तो  क्षेत्र पंचायत प्रमुख और जिला पंचायत अध्यक्ष के पद को चुनाव सीधे जनता के  द्वारा न होकर जनता के द्वारा चुने गये क्षेत्रपंचायत सदस्य (Intermediate Panchayt Member) और जिला पंचायत सदस्यों द्वारा किया जाता है। आज भी कमोबेश अधिकांश  क्षेत्रपंचायत सदस्य और जिला पंचायत सदस्यों का  चुनाव जनता जातिगत  और समुदाय को आधार मानकर करती है। यही चुने गये क्षेत्रपंचायत सदस्य (Intermediate Panchayt Member)  और जिला पंचायत सदस्य जब क्षेत्रपंचायत प्रमुख और जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव करते है तो  धनबल,बाहुबल  और सत्ताधारी दल के प्रभाव में आ जाते हैं। राष्ट्रीय दल विशेषकर काॅग्रेस यदि आकलन करे तो पायेगी कि जहाॅ जहाॅ समुदाय आधारित  क्षेत्रीय दलों की सरकारें सत्ता  में रही हैं,वहाॅ वहाॅ  ग्रामीण क्षेत्रों में भी काॅग्रेस कमजोर हुई है।
पंचायतीराज व्यवस्था में जातिगत और समुदायगत प्रभाव के साथ साथ धनबल,बाहुबल और  सत्ताधारी दल के अनावश्यक प्रभाव को रोकने  के लिये  विकल्प  खोजने  होेगे, नहीं तो पंचायती राज व्यवस्था अपनी मूल अवधारणा खो देगी। सवॅथा उपयुक्त विकल्प है, कि जिस  प्रकार से नगर निकायों में नगर पंचायत अध्यक्ष, नगरपालिका अध्यक्ष और मेयर के चुनाव सीधे जनता द्वारा चुनकर किये जाते हैं इसी प्रकार से अावश्यक रुप से एक्ट में संशोधन किया जाये कि हर हाल में क्षेत्र पंचायत प्रमुख का चुनाव जनता द्वार सीधे किया जाये, जिससे पंचायत के इस स्तर में धनबल, बाहुबल और सत्ताधारी दल के प्रभाव न्यूनतम हो सके और एक जनता का चुना हुआ प्रतिनिधि अपने क्षेत्र के विकास के प्रति प्रतिबद्ध हो सके।
दूसरा और महत्वपूणॅ संशोधन यह हो कि जिला पंचायत स्तर को ही समाप्त कर दिया जाये, केवल द्विस्तरीय पंचायतीराज व्यवस्था कायम की जाये। यह सबको विदित ही है, कि एक ग्राम प्रधान, एक क्षेत्रपंचायत सदस्य और एक जिला पंचायत सदस्य किसी ग्राम का निवासी होता है। लेकिन दुविधा यह है कि उस ग्राम का प्रधान, क्षेत्र पंचायत सदस्य (Intermediate Panchayt Member) और जिला पंचायत सदस्य अपने अपने स्तर से पंचायत निधि लाकर विकास के काम करने का प्रयास करता है, जबकि निधि का आबंटन सरकार की नीति के अनुसार एक ही स्रोत से किया जाता है। तो इसे तीन स्तरों में आबंटित करने से कोई विशेष लाभ तो होता नहीं है, एेस में आवश्यक है कि विचार किया जाये कि जब दो ही स्तर (Two Tier) पंचायती राज व्यवस्था को होंगे तो धन का अधिक सदुपयोग सुनिश्तित हो सकेगा। 
वैसे भी देखा जाये तो जिला पंचायत ऐसा कोई अनोखा काम नहीं करती है, जो कि ग्राम पंचायत या क्षेत्र पंचायत (Intermediate Panchayt) न कर सके। हाॅ , क्षेत्र पंचायत (Intermediate Panchayt) का होना इसलिये आवश्यक है कि हमारे देश में अाज भी अनेकों क्षेत्र ऐसे है, जो विकास से अब भी कोसों दूर हैं। एेस में स्थानीय ईकाई के रुप में क्षेत्र पंचायत का होना लाजिमी है। अगर जिला स्तर पर किसी फोरम की आवश्यकता बनती भी है, तो उस जिले के सांसद की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया जा सकता है और उसमें उस जिले के सभी नगर निकायों के अध्यक्ष, सभी क्षेत्र पंचायत प्रमुख और विधायकों को लिया जा सकता है, क्योंकि ये सभी किसी न किसी स्तर पर पंचायतों को प्रतिनिधित्व करते हैं और इस प्रकार की जिला स्तरीय कमेटी अधिकांशतः सभी राज्यों में गठित भी है। इस प्रकार से केवल द्विस्तरीय (Two Tier) पंचायती राज व्यवस्था को अपनाने और सीधे जनता के द्वारा क्षेत्र पंचायत प्रमुख के चुने जाने से सही रुप से लोकतांत्रिक व्यवस्था स्थापित हो सकेगी वरन् विकास के लिये अधिक समुचित ढंग से योजनाओं का क्रियान्वयन हो सकेगा। पंचायती राज व्यवस्था में इस प्रकार के संशोधन से काॅग्रेस जैसे राष्ट्रीय दलों को अपना खोया जनाधार मिलेगा और राजनीति में धनबल, बाहुबल, जातिबल, समुदायबल और सत्ताधारी दल के अनाधिकृत प्रभाव को निश्चय ही बल मिलेगा।

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