Tuesday 12 January 2016

स्वामी विवेकानंद जयंती 12 जनवरी मकर संक्रांति - नैतिक शिक्षा

स्वामी विवेकानंद जयंती 12 जनवरी मकर संक्रांति - नैतिक शिक्षा


हमेशा से ही यह सर्वमान्य है कि मानवता ही सच्ची राष्ट्रीयता है। अब विचारणयी प्रश्न आज के युग में यह है कि मानवता से क्या अभिप्राय है..? युगों से हमें मानवता – आध्यात्म – योग की दिशा में स्वामी विवेकानन्द जी से ही प्रेरणा मिलती रही है। मानवता तभी बलवती होती है, जब हम में कहीं न कहीं नैतिकता का प्रकाश आलोकित करता है।


हममें से शायद सभी ने अपने बाल्याकल के समय कक्षा आठ तक एक विषय के रुप में नैतिक शिक्षा यानि Moral Science का अध्ययन किया होगा और नैतिक शिक्षा तो हम सभी को सबसे पहले अपने परिवार से ही मिलने लगती है। फिर भी आज इस बात पर जोर दिया जाता है, कि भौतिकतावादी युग में नैतिक मूल्यों का पतन अत्यधिक हो रहा है। जब बात मानवता और सच्ची राष्ट्रीयता की आती है, तो निश्चित रुप से नैतिक मूल्यों की बात करना लाजिमी हो जाता है। यदि मनुष्य के अन्दर नैतिकता नहीं होगी तो फिर मानवता और सच्ची राष्ट्रीयता की बात करना बेमानी है। ऐसे में हमें स्वामी विवेकानन्द से प्रेरणा मिलती है, जिन्होंने भारत ही नहीं वरन् सारे विश्व को नैतिकता का पाठ पढ़ाया, जिसे हम आध्यात्म भी कह देते है। योग और आध्यात्म की ओर अग्रसर होने में नैतिक मूल्यों के प्रति मानव की दृष्टि और भी स्पष्ट होने लगती है तथा मानव सच्ची मानवता का वरण करते हुये सच्ची राष्ट्रीयता की सोच के साथ समाज में अपना योगदान करने लगता है।



पॅाच आध्यात्मिक शक्तियां जो हमें सच्ची मानवता की ओर ले जाती हैं  शुद्ध उपस्थिति की शक्ति, जब आप अहंकार के साथ उपस्थित रहेंगे तो कार्य नहीं होंगे और जब निराकार उपस्थित रहेंगे तो घटनायें खुद पर खुद लक्ष्य की तरफ होने लगती हैं। स्व स्थिरता की शक्ति – इंसान स्थिरता तभी खोता है, जब वह समस्या से भागना चाहता है और पलायनवादी बन जाता है, हमें पलायन से मुक्ति पाना जरुरी है। एहसानमंदी भाव शक्ति – अपने जीवन में आनेवाली हर चीज के प्रति ईश्वर के प्रति एहसानमंदी यानी धन्यवाद का भाव रखना। भाव का प्रभाव सभी सकारात्मक चीजों को आकर्षित करता है। समेटने की शक्ति – समेटने की शक्ति यानी अपने उद्देश्य पर ध्यान केन्द्रित करते हुये अपनी ऊर्जा को लक्ष्य पर समेटना। उदासीन उत्साह शक्ति – यानी जो भी काम कर रहे हैं, उसे अनासक्ति भाव से करें तात्पर्य है कि जो भी कर्म करें उसके आने वाले फल के प्रति उदासीन रहें।


आज विचार करने की आवश्यकता है, कि नैतिक शिक्षा जैसे विषय को केवल आठवीं कक्षा तक ही सीमित न कर उसे बारहवीं कक्षा तक अनिवार्य किया जाये। जिससे आधुनिकता की दौड़ में आने वाली भविष्य की पीढ़ी बेहतर ढंग से मानवता और सच्ची राष्ट्रीयता का भाव अपने भीतर जगा सके।
जहॅा तक योग और आध्यात्म का प्रश्न है, यह हिन्दू धर्म के हिसाब से मन को बड़ा शांत करने का माध्यम है, जब मन शांत होगा तो निश्चित रुप से अच्छे विचारों का जन्म होगा और एक नई सकारात्मक ऊर्जा के साथ मानव कल्याण की भावना जागृत होगी। मकर संक्रांति के दिन स्वामी जी का जन्म हुआ और मान्यता है, कि इस दिन से सूर्य का प्रकाश धरती पर बढ़ने लगता है। निश्चित रुप से सकारात्मक ऊजॅा का संचार होता है। अनुभव भी बताता है कि माह जनवरी में पैदा हुये लोगों में आध्यात्म- मानव कल्याण – शांति का भाव जन्मजात होता है, ऐसे महान व्यक्तित्व समाज के हर क्षैत्र में पैदा हुये हैं, जैसे सूफी संत रैदास, लेखिका महाश्वेता देवी, गायक येशूदास, सुभाष चन्द्र बोस, लाला लाजपत राय, क्रिकेटर कपिल देव, राहुल द्रविण, चेतेश्वर पुजारा, वैज्ञानिक हरगोविन्द खुराना आदि आदि। मुझे व्यक्तिगत रुप से इस बात से ही काफी आध्यात्मिक शांति मिलती है, कि मेरा जन्म भी स्वामी जी की तरह मकर संक्रांति के दिन 15  जनवरी,1969 को हुआ, जो मेरे लिये सौभाग्य का विषय है।

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